पीरियड्स एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे हर महीने लड़कियों को गुजरना पड़ता है। किशोरियों को जब महावारी शुरू होती है तो उन्हें खुद का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है। लेकिन हमारे समाज में आज भी इस पर खुलकर बात नहीं होती। हालांकि कई एनजीओ इस दिशा में जागरूकता फैला रही हैं। बॉलीवुड में पैड मैन जैसी फिल्में भी बनीं। कुछ सरकारों ने स्कूलों में किशोरियों को सैनिटरी पैड बांटने की योजना बनाई। लेकिन हाल ही में एक मामला सामने आया कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सैनिटरी पैड नहीं बांटे जा रहे। एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट ने शिक्षा निदेशालय के खिलाफ किशोरी योजना के तहत दिल्ली के स्कूलों में सैनिटरी पैड नहीं बांटने की याचिका दायर की थी।
माई स्टोरी ट्रस्ट 3 साल से स्लम इलाकों में सैनिटरी पैड बांट रही है। इस संस्था के फाउंडर सना श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने दिल्ली के हैदरपुर में एक सर्वे किया था। इसमें 300 महिलाओं को शामिल किया गया। इनमें से 90 को वजाइना में इंफेक्शन था। इन महिलाओं में कोई भी सैनिटरी पैड इस्तेमाल नहीं कर रही थीं। उन्होंने बताया कि भले ही सरकार सैनिटरी पैड के लिए कई योजना चला रही हैं लेकिन हकीकत में इसका लाभ औरतों को नहीं मिल पा रहा। जन औषधि केंद्रों पर सैनिटरी पैड्स सिर्फ 1 रुपए में मिल रहा है। लेकिन गरीब महिलाओं के लिए इन्हें खरीदना मुश्किल होता है। इस वजह से वह आज भी कपड़ा इस्तेमाल करने को मजबूर हैं। सैनिटरी पैड को एक लग्जरी आइटम बना दिया गया है। जबकि यह हर औरत का हक है और इसे मुफ्त में बांटना चाहिए।
नोएडा सेक्टर-110 स्थित भंगेल में कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में गायनाकोलॉजिस्ट डॉक्टर मीरा पाठक ने बताया कि पीरियड्स में साफ सफाई रखना बेहद जरूरी है। जो महिलाएं होम मेड पैड यानी कपड़ा इस्तेमाल करती हैं तो उनमें हेल्थ प्रॉब्लम ज्यादा देखने को मिलती हैं। सैनिटरी पैड का इस्तेमाल कई बीमारियों से बचा सकता है। लेकिन गरीब तबके की महिलाएं इसका इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं। अगर पीरियड्स में हाइजीन का ध्यान ना रखा जाए तो बच्चेदानी में सूजन हो सकती है। बच्चियों में वजाइनल इंफेक्शन खासकर फंगल इंफेक्शन हो सकता है। इसके अलावा रैशेज और यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई ) भी हो सकता है। जागरूकता के बावजूद भारत में अभी भी 49.6% महिलाएं पीरियड्स में कपड़ा इस्तेमाल करती हैं। यह बात नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-21) में सामने आई है।
पीरियड्स के दौरान मेन्स्ट्रूअल हाइजीन ना रखना औरतों की मौत का दुनिया में 5वां कारण है। वहीं, 2.3 करोड़ लड़कियां हर साल सैनिटरी पैड ना होने की वजह से स्कूल छोड़ देती हैं। वॉटर ऐड की रिपोर्ट के अनुसार पानी की कमी और हाइजीन नहीं होने के कारण दुनिया में 8 लाख महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से 2014 से मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) योजना चलाई गई। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 10 से 19 साल तक की उम्र की लड़कियों के बीच पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है। इसके अलावा 6 रुपए में 6 नैपकिन वाला पैकेट दिया जाता है। आशा वर्कर्स को इसके बांटने का जिम्मा सौंपा हुआ है लेकिन 1 रुपये में 1 सैनिटरी पैड खरीदना भी गरीब तबके के लिए लोगों के लिए मुश्किल है।