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कमलनाथ के चुनावी फंडे के कायल शिवराज, जानें किसको फायदा-नुकसान?

by CIN News Network
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मध्यप्रदेश में आखिरकार मेयर और नगरपालिका अध्यक्ष को जनता नहीं, बल्कि पार्षद चुनेंगे। प्रदेश में 22 साल बाद नगरीय निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से होने जा रहे हैं। चुनाव का ये तरीका कांग्रेस शासनकाल में 1999 तक लागू रहा, लेकिन तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने इसे बदला। तब से अब तक हुए चुनावों में महापौर-अध्यक्ष को जनता ही चुनती आ रही थी। पिछले चुनावों के परिणाम देखें, तो भाजपा को इसका फायदा ज्यादा हुआ। यही वजह है कि 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी, तो कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने का फैसला किया। उस समय भाजपा ने इसका विरोध किया था। जब शिवराज की अगुवाई में पार्टी फिर सत्ता में आई, तो पहले इस फैसले को पलट दिया गया। लेकिन अब नगरीय निकाय चुनाव के ऐन पहले शिवराज सरकार फिर उसी पैटर्न पर चुनाव कराने जा रही है, जिसका विरोध कर रही थी। आखिर शिवराज को क्यों भाया कमलनाथ का चुनावी फंडा? मेयर-अध्यक्ष को पब्लिक की बजाय पार्षदों से चुनवाए जाने के पीछे की क्या है कहानी? इससे किसको सियासी फायदा और किसका नुकसान होगा?

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सरकार के सूत्रों का दावा है कि भाजपा के MLA नहीं चाहते कि महापौर-नपा अध्यक्ष, जनता के वोट से जीतकर आएं। उनका मानना है कि जनता द्वारा चुने गए महापौर-अध्यक्ष स्थानीय स्तर पर सियासी तौर पर सांसद-विधायकों से ज्यादा ताकतवर रहते हैं, जबकि पार्षदों द्वारा चुने जाने पर महापौर का कद विधायकों की अपेक्षा कम रहता है। मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि शिवराज ने नगरीय निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का निर्णय विधायकों के दबाव में लिया। यही वजह है कि प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने के अध्यादेश को डेढ़ साल तक विधानसभा में पारित नहीं कराया गया। दरअसल, सीधे महापौर चुने जाने से स्थानीय राजनीति में उनका कद विधायक से ज्यादा हो जाता है। यदि पार्षद से महापौर चुने जाते हैं, तो उसमें विधायकों की भूमिका अहम हो जाती है। महापौर उनके दबाव में रहते हैं। शिवराज सरकार ने ही मेयर व अध्यक्षों को पॉवरफुल बनाया था। उन्होंने नियमों में बदलाव कर विकास कार्यों के लिए राशि खर्च करने की सीमा में इजाफा भी किया। ऐसे में विधायकों को अपने क्षेत्र में काम सेंशन कराने के लिए महापौर अथवा अध्यक्ष से अनुरोध करना पड़ता है, लेकिन पार्षदों में से महापौर बनने से विधायक यह काम आसानी से करा लेते हैं।

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