जबलपुर के त्रिपुर सुंदरी मंदिर का इतिहास अनोखा है। कलचुरी काल के इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को स्वयं से प्रकट माना जाता है। त्रिपुर सुंदरी की यह मूर्ति द्वापर युग की मूर्ति बताई जाती है। देवी कलचुरी राजा कर्ण की कुल देवी हैं। किवदंती है कि हथियागढ़ के राजा कर्ण, देवी मां के सामने खौलते तेल से भरे कड़ाहे में कूद गए। फिर मां ने राजा कर्ण को अमृत का सेवन कराकर जीवित किया। राजा कर्ण रोज सवा मन सोना मां को दान दिया करते थे।
राजा कर्ण ने 11वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया था। मां त्रिपुर सुंदरी जो सदियों तक तेवर सहित आसपास के इलाके में बड़ी खेरमाई या हथियागढ़ वाली खेरदाई के नाम से जानी जाती रही हैं। त्रिपुरी को पहले करनबेल नाम से भी जाना जाता था। मां की अलौकिक शक्ति व चमत्कारों की यहां अनेक कहानियां और किवदंतियां लोग आज भी सुनाते हैं। त्रिपुर सुंदरी की माता तीन रूपों में पद्मासन में बैठी हैं। उनके यहां पर तीन रूप महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती के हैं। त्रिपुर सुंदरी मंदिर के प्रधान पुजारी रमेश प्रसाद दुबे के मुताबिक लगभग 100 साल पहले मंदिर में पहले कोई नहीं आता था। जंगल में शेर हुआ करते थे। जो मां के सामने सिर पटका करते थे। पहले त्रिपुर सुंदरी मंदिर को हथियागढ़ के नाम से जाना जाता था। बाद में प्रधान पुजारी के द्वारा मंदिर का नाम त्रिपुर सुंदरी रखा गया। मां त्रिपुर सुंदरी के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। नवरात्रि के समय श्रद्धालुओं की संख्या और भी बढ़ जाती है। दर्शन के लिए लाइनें लगती हैं। मंदिर की दानपेटी में विदेशी मुद्रा डॉलर व यूरो भी लोग चढ़ाकर जाते हैं। वर्तमान में इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है।