मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए भले ही एक साल से ज्यादा का वक्त हो, मगर दोनों प्रमुख राजनीतिक दल — सत्ताधारी भाजपा व विपक्षी कांग्रेस की चुनाव को लेकर कदमताल तेज होती जा रही है और अब वे पूरी तरह चुनावी मोड में भी आ गए हैं। कांग्रेस जहां उम्मीदवारी के लिए जमीनी सर्वे करा रही है तो वहीं भाजपा नेताओं का फीडबैक जुटाने में लगी है,आगामी चुनावों को लेकर भाजपा ने कमर कस ली है। 2023 तक होने वाले सभी विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ेगी। रणनीति के मुताबिक किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का नाम प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा। हालांकि, मौजूदा मुख्यमंत्रियों को चुनाव जीतने के बाद भी CM बने रहने का मौका मिल सकता है। इस साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव हैं। जबकि अगले साल कर्नाटक, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं,एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि, मौजूदा मुख्यमंत्रियों की भी यही राय है कि विधानसभा चुनाव में सिर्फ PM का चेहरा होना चाहिए। केंद्र की योजनाओं का सत्तारूढ़ राज्य सरकार की तरफ से बेहतर डिलिवरी का नैरेटिव सेट करना चाहिए। राज्यों के मतदाताओं को यह संदेश देना चाहिए, मोदी के नेतृत्व में डबल इंजन सरकार बेटर चॉइस है।पार्टी के एक महासचिव ने कहा, सामूहिक नेतृत्व का मतलब यह नहीं है कि सत्ता में आने पर CM बदला जाएगा। हो सकता है कि मौजूदा CM को दोबारा मौका दिया जाए, जैसा गोवा या उत्तराखंड में हुआ,जिन राज्यों में भाजपा विपक्ष में है वहां भी पार्टी मोदी के चेहरे के साथ सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। सूत्रों का कहना है कि पार्टी के आंतरिक सर्वे में कोई मौजूदा CM ऐसा नहीं है जिसकी लोकप्रियता 25 फीसदी से ऊपर हो, जबकि PM मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 75 फीसदी से ऊपर है। ऐसे में पार्टी किसी भी मौजूदा CM को ही अपना चेहरा प्रोजेक्ट कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी।