महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड में भी 175 निर्दलीय पार्षद जीते
इस बार के नगरीय निकाय चुनाव में निर्दलीयों ने जमकर बाजी मारी। चाहे वो महाकौशल क्षेत्र हो या फिर विंध्य और बुंदेलखंड, बेहद चौकाने वाले परिणाम आये हैं इस बार. भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले जबलपुर सहित महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र के लगभग सभी जिलों के नगरीय निकाय चुनाव में आये हालिया परिणाम से लगता है कि मतदाता अब अपना रुख बदल रहे हैं. बात अगर जबलपुर की करें तो सबसे ज्यादा चौकाने वाले परिणाम एआईएमआईएम ने दिए अपने दो पार्षद जिताकर। इसके अलावा 7 निर्दलीय पार्षद भी निचली सदन में पहुंचे। वारासिवनी में सबसे ज्यादा 10 निर्दलीय पार्षद नगर पालिका की सीढी चढ़ने में कामयाब रहे। बिरसिंगपुर नगर परिषद में 8 निर्दलीय और एक बसपा पार्षद जीतकर आया। दमोह नगर पालिका में भी 7 निर्दलीय और एक बसपा पार्षद जीता। खरगापुर, तरीचरकलां और ककरहटी नगर परिषद में भी आठ-आठ पार्षदों ने बाजी मारी। कमोबेश इसी तरह कस परिणाम दूसरे नगर पालिका और नगर परिषदों में भी देखने को मिले। बात करें महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड की तो यहाँ के नगरीय निकाय चुनाव में 175 निर्दलीय पार्षदों के अलावा बसपा के 16, आम आदमी पार्टी के 8 और एआईएमआईएम के 2 पार्षद जीतकर आये हैं।
अब बात प्रदेश की करें तो चुनाव परिणाम आने कस बाद भाजपा-कांग्रेस दोनों जीत का जश्न मना रही हैं। बावजूद इसके पेंच अभी फंसा हुआ है। 347 में से 27 निकाय ऐसे हैं, जहां किसका राज होगा, यह तय नहीं है। 105 शहरों में किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है । यहां भाजपा-कांग्रेस को तीसरा मोर्चा या निर्दलीयों के साथ नगर पालिका अध्यक्ष, नगर परिषद अध्यक्ष या निगम अध्यक्ष बनाना पड़ेगा। कई जगह दोनों पार्टियों के पास बराबर पार्षद हैं या एक-दो का ही अंतर है। ऐसे में किंगमेकर बनाने में निर्दलीयों की अहम भूमिका होगी। वोटिंग और काउंटिंग के बाद अब निकायों में अध्यक्ष चुने जाएंगे। इन्हें पार्षद मिलकर चुनेंगे। 105 शहर ऐसे हैं, जहां निर्दलीयों या तीसरे मोर्चे का सहारा लिए बिना न भाजपा अध्यक्ष बना सकती है, न कांग्रेस। कुछ ही दिन में नगरीय निकायों में वोटिंग होगी, जिस पार्टी के पास सबसे ज्यादा पार्षदों के वोट होंगे, उसका अध्यक्ष कुर्सी संभालेगा।
इसी तरह प्रदेश के 255 नगर परिषदों में 89 में किसी को बहुमत नहीं मिला। 27 नगर परिषदों में तो भाजपा-कांग्रेस की तुलना में निर्दलीयों और अन्य दलों के इतने पार्षद जीते हैं कि वे अकेले ही मिलकर अपना अध्यक्ष चुन सकते हैं। वहीं, शेष में भाजपा-कांग्रेस दोनों के पास मौका है कि वे निर्दलीयों और अन्य के सहयोग से अध्यक्ष बना सकते हैं।