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सिर्फ शब्दों से नहीं, अपने कार्य से देश के लोगों को भरोसा दिलाऊंगा- चीफ जस्टिस चंद्रचूड़

by CIN News Network
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देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप मे ली शपथ, पिता वायवी चंद्रचूड़ भी रह चुके हैं सीजेआई

नई दिल्ली। देश के नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने राष्ट्रपति भवन में शपथ ली। वहां आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, सुप्रीम कोर्ट के जज, केंद्रीय मंत्री समेत तमाम गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।

Justice chandrachud-taking oath as cji

देश के 50वें सीजेआई के रूप में पद ग्रहण करने वाले चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर 2024 तक रहेगा। शपथ के बाद सीजेआई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां उन्होंने परिसर में मौजूद गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद उन्होंने कहा कि वह जनता के हितों के लिए काम करेंगे, यही उनका उद्देश्य है. जब उनसे पूछा गया कि देश के लोगों को कैसे भरोसा दिलाएंगे कि न्यायपालिका उनके साथ है? जवाब में उन्होंने कहा कि मैं अपने कार्य से देश के लोगों को भरोसा दिलाऊंगा, सिर्फ शब्दों से ही नहीं। पूर्व सीजेआई यूयू ललित एक दिन पहले ही रिटायर हुए हैं, उनका कार्यकाल 74 दिनों का रहा लेकिन इस दौरान उन्होंने कई बड़े बदलाव किए। उन्होंने ही उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ का नाम प्रस्तावित किया था। जस्टिस ललित की फेयरवेल पार्टी में चंद्रचूड़ ने कहा कि उनके उत्तराधिकारी के रूप में मेरे कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारियां हैं और मुझे उम्मीद है कि वह मेरे द्वारा शुरू किए गए अच्छे कामों को जारी रखेंगे।

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पहली बार वर्ष 2000 में बने थे जज
जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ 2016 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे। उससे पहले वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे। जज के रूप में उनकी पहली नियुक्ति साल 2000 में बॉम्बे हाई कोर्ट में हुई थी। उससे पहले सीजेआई भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसीटर जनरल रहे हैं।

44 साल पहले पिता भी रहे चीफ जस्टिस
जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता भी भारत के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। उनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ सबसे लंबे समय के लिए इस अहम पद पर रहे हैं। वह 1978 से 1985 यानी 7 साल तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे।

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फैसलों में दिखती है छाप
उदार छवि के फैसलों में हमेशा उनके व्यक्तित्व की छाप दिखती है। व्यभिचार के लिए लगने वाली आईपीसी की धारा 497 को रद्द करते समय दिए गए फैसले में उन्होंने लिखा कि एक शादीशुदा महिला की भी अपनी स्वायत्तता है। उसे पति की संपत्ति की तरह नहीं देखा जा सकता। उसका किसी और पुरूष से संबंध रखना तलाक का उचित आधार हो सकता है, लेकिन इसे अपराध मान कर दूसरे पुरुष को जेल में डाल देना गलत होगा।

कई फैसलों में अहम भूमिका
हाल ही में उन्होंने अविवाहित महिलाओं को भी 20 से 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति दी। इस ऐतिहासिक फैसले में उन्होंने यह भी कहा कि अगर पति ने जबरन संबंध बनाकर पत्नी को गर्भवती किया है, तो उसे भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार होगा। इस तरह गर्भपात के मामले ने ही सही, कानून में पहली बार वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप को मान्यता मिली। अयोध्या मामले का फैसला देने वाली 5 जजों की बेंच के जस्टिस चंद्रचूड़ भी सदस्य थे। आधार मामले में फैसला देते हुए उन्होंने निजता को मौलिक अधिकार घोषित करवाने में अहम भूमिका निभाई है।

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