नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरी और दाखिलों में आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों यानी ईडब्लूएस के तहत आने वाले लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने को अपनी मुहर लगा दी है।
शिक्षाविद मोहन गोपाल ने 13 सितंबर को ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध किया था और ये दलील दी थी कि केंद्र सरकार ‘पिछले दरवाजे से’ आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था। उसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना अहम फैसला सुनाया है। ये फैसला आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए राहत भरी खबर है, जिसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 10 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा है।
ईडब्ल्यूएस कोटा पर सुको के 5 जजों में से 3 ने आरक्षण को संवैधानिक ठहराया, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को दस फीसदी आरक्षण बना रहेगा। सुको ने कहा, ईडब्ल्यूएस कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ है, हालांकि जस्टिस भट ने आरक्षण को असंवैधानिक माना और उन्होंने बाकी जजों से असहमति जताई। संविधान पीठ ने बहुमत से संवैधानिक और वैध करार दिया। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने ईडब्ल्यूएस कोटे पर बहुमत का फैसला दिया, जबकि जस्टिस एस. रवींद्र भट और सीजेयू यूयू ललित ने असहमति जताते हुए इसे अंसवैधानिक करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है। मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने वाला बताया था। तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार नहीं हो सकता है और शीर्ष अदालत को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा, यदि वह इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है। दूसरी ओर, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संशोधन का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग है तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया। उन्होंने कहा था कि संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
बता दें कि सुको ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की। जनहित अभियान द्वारा 2019 में दायर की गई प्रमुख याचिका सहित लगभग सभी याचिकाओं में संविधान संशोधन (103वां) अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती दी गई थी। केंद्र सरकार ने एक फैसले के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में ईडब्ल्यूएस कोटा कानून को चुनौती देने वाले लंबित मामलों को स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए कुछ याचिकाएं दायर की थीं। केंद्र ने 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से दाखिले और सरकारी सेवाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था।