नवरात्र में पुरुष और महिलाएं दोनों गरबा करते हैं, लेकिन निमाड़ के खरगोन में ऐसा प्राचीन मंदिर है, जहां सिर्फ पुरुष ही गरबा करते हैं। महिलाएं मंदिर में बैठकर गरबा देखती हैं। वे भजन गाती हैं। इस मंदिर में ये परंपरा वर्षों से चली आ रही है। एक और खास बात है कि यहां एक कुआं भी है, इसके पानी से श्रद्धालु सिर्फ नवरात्र में ही स्नान करते हैं,मंदिर के पुजारी रामकृष्ण भट्ट बताते हैं कि मंदिर में विराजित माता की पिंडिया कुएं से निकाली गई है। बताया जाता है कि इस मंदिर में नवरात्र में आरती के पहले रोजाना पुरुषों द्वारा सात गरबे की परंपरा चली आ रही है। खास बात ये है कि यहां पुरुष श्रद्धालु डांडियों के बजाए हाथों से ताल से ताल मिलाकर झूमते हुए गरबा करते हैं। इस दौरान माता के चबूतरे की पूरी परिक्रमा की जाती है। पास ही स्थित चबूतरे पर बैठकर महिलाएं गरबे को स्वर देती हैं। बताया जाता है कि सात गरबे ही पिछले 150 साल से गाए जाते हैं,
मंदिर के पुजारी रामकृष्ण भट्ट बताते हैं कि मंदिर में विराजित माता की पिंडिया कुएं से निकाली गई है। बहुत पुरानी बात है, मंदिर के संस्थापक भटाम भट्ट दादा को देवी ने स्वप्न में दर्शन दिए। बताया- हम घर के बाहर झिरे में हैं। भटाम भट्ट दादा ने कुएं से मूर्तियों को निकाल कर पीपल की ओट से स्थापित कर पूजन शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि माता शीतल जल से निकली हैं। इनमें माता की नौ मूर्तियां हैं,मंदिर में ब्रह्माजी की शक्ति ब्राह्मी, भगवान महेश की शक्ति माहेश्वरी, भगवान विष्णु की शक्ति वैष्णवी, कुमार कार्तिक की शक्ति कौमारी, भगवान इंद्र की शक्ति इंद्राणी, भगवान वराह की शक्ति वाराही व स्व प्रकाशित मां चामुण्डा के साथ ही महालक्ष्मी, सरस्वती व शीतला, बोदरी खोखरी माता मंदिर की चौपाल पर प्रतिष्ठित हैं। नौ देवियों के साथ भगवान महाबलेश्वर, अष्ट भैरव और हनुमानजी एक ही चबूतरे पर विराजित हैं। श्रद्धालु माता के चबूतरे की परिक्रमा के साथ ही सभी आराध्य की भी परिक्रमा करते हैं।