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शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का सफरनामा

by CIN News Network
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शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का सफरनामा

ज्योतिर्मठ और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया।शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को 98 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्हें माइनर हार्ट अटैक आया। मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर के परमहंसी गंगा आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली। शंकराचार्य लंबे समय से बीमार चल रहे थे,स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में श्री धनपति उपाध्याय और श्रीमती गिरिजा देवी के यहां हुआ.माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्राएं प्रारंभ कर दी थीं. इस दौरान वह काशी पहुंचे ..और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी.जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह  क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी. वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष.भी थे. 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाए गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली. 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास..की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से पहचाने जाने लगे.अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम चलाने के लिए उन्हें पहले वाराणसी की जेल में नौ महीने और फिर मध्य प्रदेश की जेल में छह महीने रहना पड़ा। इस दौरान वह करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी रहे,1950 में स्वामी स्वरूपानंद दंडी संन्यासी बनाये गए। शास्त्रों के अनुसार दंडी संन्यासी केवल ब्राह्मण ही बन सकते हैं। दंडी संन्यासी को ग्रहस्थ जीवन से दूर रहना पड़ता है। उस दौरान उन्होंने ज्योतिषपीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-संन्यास की दीक्षा ली थी। इसके बाद से ही उनकी पहचान स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के रूप में हुई। 1981 में स्वामी स्वरूपानंद को शंकराचार्य की उपाधि मिली,स्वामी स्वरूपानंद को नेहरु-गांधी परिवार का काफी करीबी माना जाता था। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक स्वामी स्वरूपानंद का आशीर्वाद ले चुके हैं। अक्सर गांधी परिवार स्वामी स्वरूपानंद के दर्शन के लिए मध्य प्रदेश जाता रहता था,द्वारका एवं शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया. वे 99 साल के थे. उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में आखिरी सांस ली. स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था. वे 1982 में गुजरात में द्वारका शारदा पीठ और बद्रीनाथ में ज्योतिर मठ के शंकराचार्य बने थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्‍वामी स्वरूपानंद सरस्वती को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नहीं माना था शंकराचार्य, क्‍या था पूरा विवाद आइए आपको बताते हैं…..दरअसल 2017 में बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य की पदवी को लेकर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती के बीच चल रहे विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्योतिष पीठ को लेकर फैसला सुनाते हुए दोनों को शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया थो। इसे लेकर जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस केजे ठाकर की डिवीजन बेंच ने फैसला सुनाया था। ज्ञात हो कि शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती का रविवार को निधन हो गया। स्‍वामी स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती दो पीठों (ज्‍योति‍र्मठ और द्वारका पीठ) के शंकराचार्य थे। वह सनातन धर्म की रक्षा के लिए आजीवन प्रयासरत रहे…..वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में 3 माह में नये शंकराचार्य के चयन करने का दिया आदेश था। हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि नई नियुक्‍ति तक स्वामी वासुदेवानन्द शंकराचार्य के पद पर बने रहेंगे। वहीं हाईकोर्ट ने काशी विद्वत परिषद, भारत धर्म महामण्डल और धार्मिक संगठन मिलकर नये शंकराचार्य का चुनाव करने का आदेश दिया था। तीनों पीठों के शंकराचार्यों की मदद से शंकराचार्य घोषित करने का आदेश दिया था।

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हाईकोर्ट ने यह आदेश शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा 1989 में दायर एक याचिका पर दिया था। वर्ष 1973 से बद्रीनाथ धाम का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आरोप लगाया था कि स्वामी वासुदेवानंद फर्जी दस्तावेजों के जरिये पर अपना दावा पेश करते रहे हैं। वह एक दंडी संन्यासी होने के पात्र नहीं हैं क्योंकि वह नौकरी में रहे हैं और 1989 से वेतन लेते रहे हैं।

कोर्ट ने कहा था कि नए शंकराचार्य के चयन में 1941 की प्रक्रिया अपनायी जाए। शंकराचार्य के पदवी को लेकर स्वामी वासुदेवानन्द और स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के बीच विवाद था। निचली अदालत ने स्वामी वासुदेवानन्द के खिलाफ फैसला सुनाया था। जिला कोर्ट ने 5 मई 2015 को अपने फैसले में स्वामी वासुदेवानंद को शंकराचार्य नहीं माना था। उनके छत्र, चंवर, सिंहासन धारण करने पर रोक लगा दी थी। बाद में 25 नवंबर, 2017 को फैसला लिया गया था कि जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ही ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य होंगे।

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