वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे के दौरान हिन्दू पक्ष की तरफ से करीब 12 फीट 8 इंच लंबा शिवलिंग नंदी के सामने मिलने का दावा किया गया है. सर्वे का काम अब पूरा हो गया और अब कल यानी 17 मई को कोर्ट के सामने टीम की तरफ से रिपोर्ट रखी जाएगी. हिंदू पक्ष के पैरोकार जितेंद्र सिंह बिसेन ने कहा, ‘ज्ञानवापी में इतने साक्ष्य मिले हैं, जो अभी उजागर नहीं किए जा सकते हैं। बस अभी इतना बताना चाहता हूं कि करीब साढ़े 12 फीट का शिवलिंग मिला है। मैं अयोध्या की तरह 500 साल का इंतजार नहीं करूंगा। बाबा विश्वनाथ का भव्य मंदिर बनकर रहेगा और जल्द से जल्द बनेगा।
सर्वे में शामिल एक सूत्र ने भास्कर को बताया, ‘यह वही शिवलिंग है, जिसे अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल ने 1585 में स्थापित कराया था। तब उनके साथ बनारस के पंडित नारायण भट्ट भी थे। शिवलिंग का ऊपरी कुछ हिस्सा औरंगजेब की तबाही में क्षतिग्रस्त हो गया था। यह शिवलिंग बेशकीमती पन्ना पत्थर का है। रंग हरा है। हालांकि शिवलिंग के साइज को लेकर कई दावे सामने आए हैं। यह शिवलिंग श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित नंदी के सामने वाले ज्ञानवापी के हिस्से में है। नंदी महाराज के सामने जो तहखाना है, उसी में अंदर मस्जिद के बीचों-बीच आज भी शिवलिंग दबा है। इसका अरघा भी काफी बड़ा है।’
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में जिसे तहखाना कहा जा रहा है वह असलियत में मंदिर मंडपम है। जो लोग भी तहखानों की बात कर रहे हैं, वे सभी मंडपम हैं। इन्हें तहखाना के बजाय मंडपम कहें तो बेहतर होगा। डॉ. तिवारी ने बताया कि उनके परिवार के पंडित नारायण भट्ट ने पन्ना पत्थर का शिवलिंग स्थापित कराया था। 90 के दशक में वाराणसी के DM रहे सौरभ चंद्र श्रीवास्तव ने तब मंडपम में ताला बंद कराया था तो उस समय भी अंदर फोटोग्राफी हुई थी, जिसमें वह शामिल थे। उस समय देखा था कि अंदर नंदी के ठीक सामने ही शिवलिंग है।
ये विवाद हाल का नहीं है, पहले भी उठता आया है. सबसे पहले 1936 में वाराणसी ज़िला अदालत में याचिका दायर की गई थी. 1937 में कोर्ट ने विवादित स्थल पर नमाज़ पढ़ने की अनुमति दी थी. 1991 में स्वयंभू विश्वेश्वर नाथ मंदिर की तरफ़ मामला दर्ज़ हुआ था जिसमें मंदिर की जगह पर मस्जिद बनी होने का दावा किया गया था.