नवजोत सिंह सिद्धू को 34 साल पुराने रोड रेज केस में 1 साल की सजा सुनाई गई है. सुप्रीम कोर्ट ने ये सजा सुनाई है. इसी केस में पहले सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या से बरी कर दिया था. पर उसी केस में पीड़ित परिवार ने फिर से सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन यानी पुनर्विचार याचिका डाली तब सुप्रीम कोर्ट ने 1 साल की सजा सुनाई. जिस घटना को लेकर ये सजा सुनाई गई है वो रोड रेज आखिर होता क्या है. आपको बता दें कि साल 2021 में रोडरेज और खतरनाक तरीके से ड्राइविंग करने के 2.15 लाख मामले सामने आए थे. फिर भी ये बात चौंका सकती है कि हमारे देश में रोड रेज को लेकर कोई अलग से कानून नहीं है.
असल में रोड रेज से मतलब उस घटना से है जो रोड यानी सड़क पर हो. इसमें सड़क पर गुस्से में होने वाला हर तरह का विवाद शामिल है. जैसे सड़क पर किसी गाड़ी को ओवरटेक करते हुए मारपीट या गाली-गलौज हो जाए. तेज हॉर्न बजाने पर एक दूसरे के बीच मारपीट या कहासुनी हो जाए. गाड़ी चलाते हुए कोई एक गाड़ी वाला जानबूझकर दूसरी गाड़ी को जाने की जगह ही ना दे. या फिर दूसरी गाड़ी के रास्ते को ब्लॉक कर दे. इसे लेकर धमकी देने लगे. या फिर कोई गंदे या अश्लील कमेंट करे या मारपीट कर चोट पहुंचाए. कई बार लोग जाम में फंसने के बाद पास वाली गाड़ियों को आगे निकालने या दूसरे वजह से भी गुस्से में आकर चिल्लाने लगे थे. उस दौरान हुई मारपीट या गुस्से में एक दूसरे की कहासुनी भी रोड रेज ही है. रोड रेज में मारपीट, गाड़ी या दूसरी किसी वस्तु को नुकसान पहुंचाने से लेकर गंभीर चोट पहुंचाने या फिर मौत भी हो सकती है.
आम लोगों में गुस्सा और जल्दबाजी की वजह से रोड रेज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. अब रोडरेज में गंभीर चोट पहुंचाने से लेकर मर्डर तक की खबरें सामने आ रहीं हैं. लेकिन भारतीय दंड संहिता यानी IPC में रोड रेज को लेकर कोई कानून नहीं है. कहा जाए तो जैसे सड़क हादसे में मौत होने पर गैर इरादन हत्या का मामला होता है वहीं रोडरेज को लेकर अलग से कोई कानून का प्रावधान नहीं है. जबकि दुनिया के दूसरे देशों की बात करें तो सिंगापुर, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में रोडरेज को लेकर सख्त कानून है. ताकी सड़क पर कोई गुस्से में किसी अपराध को अंजाम ना दे. यही वजह है कि मार्च 2021 में रोडरेज जैसे एक मामले की सुनवाई करते हुए केरल हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि रोड रेज के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस संबंध में दंडनीय अपराध वाले कानून बनाए जाने की जरूरत है.
दरअसल 1988 में पंजाब के पटियाला में पार्किंग के दौरान सिद्धू और 65 साल के बुजुर्ग गुरनाम सिंह में विवाद हुआ था. उस समय सिद्धू नए-नए क्रिकेटर के तौर पर एक साल से उभरे थे. विवाद बढ़ने पर सिद्धू ने गुरनाम सिंह पर घूंसे चलाए थे जिसमें बुजुर्ग गुरनाम की जान चली गई थी. इस मामले में रोडरेज का तो मामला नहीं बना था लेकिन गैर इरादतन हत्या की रिपोर्ट हुई थी. इस मामले में सितंबर 1999 में पंजाब के लोअर कोर्ट ने सिद्धू को बरी कर दिया था. पर दिसंबर 2006 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने गैर इरादत हत्या यानी IPC की धारा 304-(II) के तहत दोषी करार देते हुए 3-3 साल कैद की सजा सुनाई थी. इसके खिलाफ की गई अपील पर साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को गैर-इरादतन हत्या के आरोपों से बरी कर दिया था. इसके बजाय IPC की धारा-323 यानी मारपीट के तहत पीड़ित को चोट पहुंचाने का दोषी माना था. इस केस में सिद्धू पर मात्र 1 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था. इसी फैसले से पीड़ित परिवार परेशान था और इसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन डाली थी. जिस पर अब फिर से सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले को पलटकर ये फैसला सुनाया है.