महाराष्ट्र में छाया सियासी संकट 11दिन बाद खत्म तो हुआ पर इसने बदल दी सियासत की तस्वीर जी हां, उद्धव ठाकरे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और एकनाथ शिंदे ने cm पद को कमान संभाली है पर क्या किसी ने सोचा कि उद्धव ठाकरे ने बतौर सीएम जब अपना आखिरी संबोधन दिया, तो उन्होंने ये दावा क्यों किया कि सबकुछ अच्छा चल रहा था, बेहतर ढंग से चल रहा था. मगर, जब सबकुछ अच्छा चल रहा था तो भला गलती कहां हुई, चूक कैसे हो गई. इसे समझने के लिए आइये आपको उन नेताओं के नाम जिनकी चालाकी और बड़े बोलों ने उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराने में अपना रोल निभाया है
महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार गिर गई, उद्धव ठाकरे बड़ी-बड़ी बातें करके सिंहासत छोड़ने को मजबूर हो गए. आंखों में नमी लेकर जब उद्धव सबके सामने आए तो उन्होंने बागी विधायकों पर खूब तीखा हमला किया, लेकिन उद्धव शायद ये भूल गए कि ताली एक हाथ से नहीं बजती. उद्धव की शिवसेना के तीन ऐसे दिग्गज नेता थे, जिन्होंने उन्हें बेबस और लाचार होने पर मजबूर कर दिया. चलिए आपको एक-एक करके उन नेताओं और उनकी गलतियों से रूबरू करवाते हैं, जो कहने को तो शिवसेना के नेता थे, लेकिन ऐसी गलतियां कर रहे थे कि उनके अपने ही उनसे रूठते चले गए और नौबत यहां तक आ गई कि कुर्सी चली गई. पहले नंबर पर आते है
संजय राउत
वैसे तो ऐसे नेताओं की सूची बड़ी लंबी है, लेकिन सर्वोच्च स्थान पर संजय राउत का नाम ही विराजमान है. राउत का नाम इसलिए क्योंकि बीजेपी से शिवसेना का नाता टूटने से लेकर, एनसीपी-कांग्रेस से गठबंधन और उद्धव ठाकरे की कुर्सी छिनने तक संजय राउत का रोल काफी अहम रहा है.आपको याद दिला दें, वो साल था 2019 और महीना था नवंबर का.. जब शिवसेना और भाजपा ने साथ-साथ चुनाव लड़ा, प्रचंड जीत हासिल हुई, लेकिन बीजेपी और शिवसेना के बीच सरकार बनाने को लेकर बात के बीच संजय राउत ने अड़ंगा लगाना शुरू कर दिया. संजय राउत ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन की लंका लगानी शुरू कर दी. उन्होंने आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब दिखाना शुरू कर दिया.
बीजेपी के पास 106 विधायक थे, लेकिन शिवसेना ने शर्त रख दिया कि बीजेपी और शिवसेना के बीच ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर ही बात बनेगी. संजय राउत ने 55 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली शिवसेना को सपने दिखाने शुरू कर दिए. अगर देखा जाए तो कहीं न कहीं भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूटने में संजय राउत की मुख्य भूमिका थी. भाजपा के साथ गठबंधन में रहते हुए राउत ने उस वक्त कहा था कि ‘हमारे में 170 विधायकों का समर्थन है.’ गठबंधन में रहते हुए उन्होंने विपक्ष के नेताओं के घर हाजिरी लगानी शुरू कर दी थी.राउत अगर सरकार बनने के बाद भी चुप हो जाते तो गनीमत रहती, शिवसेना ने जब विचारों से समझौता कर महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाई. उसके बाद भी वो लगातार बेतुकी बातें करते रहते थे. एक वक्त ऐसा आया कि खुद शिवसेना के बड़े-बड़े नेता, विधायक और मंत्री ही राउत को नापसंद करने लगे. हालांकि शिवसेना प्रमुख और उस वक्त के सीएम उद्धव ठाकरे ने इसे लगातार नजरअंदाज किया. वो शांत रहे और संजय राउत बोलते रहे.
दूसरे नाम पर जिनका नाम आता है वो फिलहाल जगज़ाहिर हैं एकनाथ शिंदे
कभी ठाणे की सड़कों पर ऑटो चलाने वाला एक युवक आने वाले समय में महाराष्ट्र सरकार की ड्राइविंग सीट पर बैठ सकता है. य3 किसी ने नही सोचा होगा,फिलहाल तो उन्होंने ढाई साल से चल रही महाविकास अघाड़ी सरकार पर एक झटके में ब्रेक लगा ही दिया है. शिवसेना के बागी विधायक और उद्धव सरकार में मंत्री रहे एकनाथ शिंदे की चर्चा दिल्ली से मुंबई तक हो रही है. उन्होंने गुवाहाटी के फाइव स्टार होटल में बैठकर उद्धव को कुर्सी छोड़ने पर मजबूर कर दिया. बागी विधायकों के साथ बैठकर सियासत की शतरंज में उन्होंने शह और मात का ऐसा खेल खेला कि उद्धव ठाकरे सन्न रह गए.
सरकार बनाने के बाद उद्धव ठाकरे ने सभी विधायकों, मंत्रियों और नेताओं का ख्याल रखने का पूरी जिम्मा एकनाथ शिंदे को ही सौंपा था. उद्धव ने अपने संबोधन में ये बताया भी कि जिसके लिए सबसे ज्यादा किया, जिसपर सबसे ज्यादा भरोसा किया, उसने ही धोखा दिया. लेकिन उद्धव ठाकरे जिसे धोखा बता रहे हैं, असल में वो सियासत का चरित्र है.
अगर उन्हें नहीं याद तो ये याद कर लेना चाहिए कि वो खुद कैसे सीएम बने थे. उस वक्त भी बीजेपी ने उनपर भरोसा करके चुनाव लड़ा. अपने पोस्टर पर पीएम मोदी का बड़ी-बड़ी तस्वीर चिपका कर शिवसेना ने पूरा चुनाव लड़ा, लेकिन उद्धव ने विचारों से समझौता कर लिया और पलटी मार ली. ऐसा ही कुछ एकनाथ शिंदे ने उद्धव के साथ किया.
एकनाथ शिंदे राजनीति के वो खिलाड़ी निकले, जिनके विद्रोह ने महाराष्ट्र की राजनीति में भूकंप ला दिया. उद्धव ठाकरे के पैरों के नीचे से जमीन खींच ली. मुख्यमंत्री पद पद रहते हुए भी सीएम आवास खाली करने पर मजबूर कर दिया. एकनाथ शिंदे ने वो कर दिखाया है, जो अब तक शिवसेना का कोई भी बागी नहीं कर सका था. उन्होंने एक ही बाजी में शिवसेना पार्टी और महाराष्ट्र सत्ता दोनों पर कब्जा करने का दांव खेला है और इस गेम में बीजेपी उनका भरपूर साथ दिया
तकनीकी तौर पर उद्धव ठाकरे के लिए सबसे खतरनाक नेता एकनाथ शिंदे ही साबित हुए हैं.
इस फ़ेहरिस्त में आदित्य ठाकरे का नाम तीसरे नंबर पर इस कारण से है, क्योंकि यदि संजय राउत की बेलगाम जुबान ने काम बिगाड़ा, एकनाथ शिंदे की बगावत ने उद्धव की कुर्सी छीनी, तो आदित्य ठाकरे की सुस्ती ने शिवसेना विधायकों को बागी होने पर मजबूर कर दिया.
आदित्य ठाकरे
ऐसा हम यूं ही नहीं बोल रहे हैं. मुंबई का वर्ली इलाका आदित्य ठाकरे का गढ़ माना जाता है. उन्होंने वहीं से चुनाव में जबरदस्त जीत भी हासिल की. लेकिन चुनाव के बाद ऐसा लगा कि आदित्य का तेज गायब हो गया. वो जैसे सुस्त पड़ गए.कहीं न कहीं शिवसेना विधायकों की बगावत इसलिए भी थी, सरकार में शिवसेना प्रमुख खुद को मुख्यमंत्री बन गए और अपने बेटे को कैबिनेट मंत्री की कुर्सी गिफ्ट कर दी. उद्धव ठाकरे ने बार-बार अपने फैसले से ये साबित करने की कोशिश की कि उनका झुकाव अपने बेटे के प्रति कुछ ज्यादा ही है.
हाल ही में आदित्य ठाकरे और कई शिवसेना विधायक, मंत्री अयोध्या जा रहे थे. तभी सीएम ऑफिस से मुंबई एयरपोर्ट पर एक फरमान आया. सभी विधायकों को अयोध्या जाने से मना कर दिया गया. लेकिन जनाब छोटे ठाकरे को छूट दे दी गई. कहीं न कहीं विधायकों के दिल में ये बात चुभ गई और यहीं से बगावत की चिंगारी भड़क उठी. फिर जो हुआ वो आज पूरा देश जनता है, देखा जाए तो इस सियासत में अपनो ने अपनो को काटा है और बड़ी ह3 चालाकी से कुर्सी हासिल की।